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    सही और गलत, सब कुछ निर्भर करता है भीतर की अभीप्सा पर- ओशो

     

    Right-and-wrong-everything-depends-on-the-inner-desire-Osho.

    सही और गलत, सब कुछ निर्भर करता है भीतर की अभीप्सा पर- ओशो 

    यह तो बचपन की पहली घटना मलूकदास के संबंध में ज्ञात है कि वे कूड़ा-कचरा राम् तों से साफ कर देते थे। और एक सद्गुरु ने कहा था उनके पिता को कि घवड़ाओ म त, चितित मत होओ, तुम्हारे घर ज्योति उतरी है; यह बहुतों के जीवन से कूड़ा-कच रा दूर करेगा। यह तो केवल बाहर की सूचना दे रहा है अभी। यह प्रतीकवत है। दूसरी घटना बचपन के संबंध में जो रोज-रोज घटती थी, जिससे मां-बाप परेशान हो गए थे वह थी : साधु-सत्संग। कोई आ जाए साधु, कोई आ जाए संत, फिर मलूकद ास घर की सुध-बुध भूल जाते। दिनों बीत जाते, घर न लौटते। साधु-संग में लग जा ते। घर में जो भी होता, साधुओं को दे देते। 

    साधुओं को तो वहुत लोगों ने दिया है, लेकिन जिस ढंग से मलूकदास ने दिया है वैसा किसी ने शायद ही दिया हो! चोरी करके देते। मां-बाप आज्ञा न दे तो घर में से ही चोरी करके, जव रात सव सोए होते. अपने ही घर की चीजें चुराकर साधुओं को दे आते। क्योंकि कोई साधु है जिसके पास कंवल नहीं है और सर्दी उतरने लगी। और कोई साधु है जिसके पास छाता नहीं है और वर्षा सिर पर खड़ी है। तो चोरी करके भी वांटते। कभी-कभी चोरी भी पुण्य हो सकती है। इसीलिए तुमसे कहता हूं : कृत्य नहीं होते पाप और पुण्य-कृत्यों के पीछे छिपे हुए अभिप्राय। कभी पुण्य भी पाप ही होते हैं और कभी पाप भी पुण्य हो जाते हैं। जीवन का गणित पहेली जैसा है। सीधी रेखा नहीं है जीवन के गणित की। कोई नहीं कह सकता कि यह ठीक और यह गलत। कि ऐसा करोगे तो ठीक और ऐसा करोगे तो गलत। 

    सब कुछ निर्भर करता है भीतर की अभीप्सा पर, अभिप्राय पर। अव चोरी को कौन पुण्य कहेगा? लेकिन मलूकदास की चोरी को में कैसे पाप कहूं? मलूकदास की चोरी को पाप नहीं कहा जा सकता। और तुम चोरी भी न करो तो भी क्या पुण्य हो रहा है! तुम दान भी देते हो तो पाप हो जाता है; क्योंकि तुम्हारी दान के पीछे भी व्यावसायिक वृद्धि होती है। तुम मंदिर भी वना ते हो तो पाप हो जाता है: क्योकि मंदिर के द्वार पर भी तुम अपना पत्थर लगवा दे ते हो।

    - ओशो 

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